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Showing posts from 2014

Tilak Lagana Jaruri Hain ( तिलक लगाना जरुरी हैं। )

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तिलक लगाना जरुरी हैं।  .  दस हो या करोड़ो वहा।  महल हो या  सिर्फ झाड़ वहा।  तंग गलियां हो या  बड़ी सड़के वहा।  सबको-अपना  अधिकार पाना , और... कर्तव्य निभाना जरुरी हैं।  इसलिए , तिलक  लगाना जरुरी हैं।  तिलक  लगाना जरुरी हैं।  ये तो मेला हैं अलग-अलग चिन्होका। रंगमंच सजता हैं , राजनीतके कलाकारोंका।  उस रंगमंच का मूल चुकाना जरुरी हैं।  इसलिए , तिलक  लगाना जरुरी हैं।  तिलक  लगाना जरुरी हैं।    डरते न वो कोई गोलीसे। डरते वो सिर्फ और सिर्फ , हमारे बीच एक-दूसरेके लिए  अच्छी बोलीसे।  इन् बारूदी काली फसल उगाने वालोको , कुछ अच्छे पाठ पढ़ना जरुरी हैं।  इसलिए , तिलक  लगाना जरुरी हैं।  तिलक  लगाना जरुरी हैं।  आरक्षण को  मत की तिजोरी समझनेवाले हो या , देशकी तिजोरीमे  छेद करके , खुद्की तिजोरी भरनेवाले।  उनको उखाड़ फेकना जरुरी हैं।  इसलिए , तिलक  लगाना जरुरी हैं।  तिलक  लगाना जरुरी हैं...

Sukunse ( सुकूनसे )

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सुकूनसे सुगंध आ रही है आज-कल थोड़ी थोड़ी , इस रेगिस्तान मे किसी फूल से।  सूंघलू उसे मैं जो थोड़ा , तो कर जाती है अलग हमको हमहींसे।  देखा तो था एक बार ! हा …देखा तो था एक बार ! लग रही थी नन्हीसे कली, सोचा न था हो जाएगी इतनी सुन्दर , जैसे दिखती है वो मोरके पंखसे। हुस्न का दिदार तो होते ही रहता है दूरसे।  पिया करते है हम मटकीसे पानी , बिना छुए उसे …और बिना किसी के डरसे।  शर्त मत लगाना कभी !! नहीं …शर्त मत लगाना कभी !! डरते नहीं है हम कसी भी आपके शर्तसे।  नहीं तो बोलना पड़ेगा हमे नाम हुज़ूरसे।  क्यु ? लग गया न धक्का ज़ोरसे। ऐसे यार ना होते अगर , तो हम बात भी करलेते सुकूनसे।  सच कहु मैं … तो पेहेले बार महसूस कर रहे हैं हम खुदको मैदान मे कमज़ोरसे।  मार डालूँगा तुम्हे …हा मार डालूँगा तुम्हे  जो बात की तुमने इसकी किसी औरसे।  ये बदला समां क्यों लगरहा है, कहा से आ रही है ये रौशनी ? ये क्या देखतो नहीं रहे हम भूलसे।  ओए !! उठजा प्यारे , तू खूब सो लिया सुकूनसे।      खूब सो लिया सुक...

Ye Silsila...(ये सिलसिला..)

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ये सिलसिला… ये सिलसिला चलताही जाएगा।  ये तुझे सुबह सबसे पेहेले देखने का ख़्वाब, हररोज़ बढ़ता ही जाएगा। ये तेरे बात करने का तरीका वक़्तसे वक़्त तक बदलता ही जाएगा। पेहेले बात … पहेली मुलाकात तो अबतक याद है, हमने बो दिए थे बीज।  हम तो डाल रहे थे पानी, बना रहे थे नाते।  अब लगता है उन्ही पानीसे, उग रहे है काटे।  कही इन् काँटोंके पीछे दूरिया तो वजह नहीं ? फर्क तो सिर्फ नज़रियों का है। खुदको पूछोगे तो मिलूँगा वही। नहीं तो फिर सामने भी रहु अगर , तो दिखूँगा नहीं। कही इन् के पीछे , ये खून के नाते वाले तो नहीं। देखो क्या दिन आगया है, की इन् खून के नाते वालो को 'रिश्तेदार' कहते थे हमही। क्या इनके पीछे रिवाज़ों का फर्क नहीं? हंसी आती है अबतक! इक्कीसवी सदी मे हम है।  पर अब भी कुछ लोग कर रहे , तू-तू और मैं-मैं।  क्या इनके पीछे हैं आगे की सोच ? डरना मत इससे ये तोह है छोटीसी बात।  मेरी तो बस ये हैं सोच , की इन् पैरो मे चलने के लिए , और इन हाथो मे तुझे पकड़ने के लिए, कभी न आएगी मोच। फिर भी ...

Ek Samay...(एक समय...)

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एक समय… एक समय होता था।  जब हम जैसे मिटटी को , उन्होंने मटको मे घडोया था।  जब माँ-बाप और परिवार के सिवा , हमने और कुछ ना पाया था।  एक समय आया था।  जब हम जैसे किसीको , हमने दोस्त बनाया था।  होता वो हमारे पास ही , कितना भी उसको हसाया या रुलाया था।  और , अब एक समय आया हैं।  की शायद 'दुरीसे' दोस्त तो छोडो , कोई तो कभी-कभी परिवारसे भी, विश्वास न बना पाया है।  दिन भर बस खुदको, बुरे खयालो मे पाया है।  जागे हो फिरभी , खुदको अंदरसे मरा पाया है।  जैसे धुपके उजालेके बीच , बडासा काला बादल , अँधेरा करने आया है।  जल्द ही !! एक समय आएगा।  जब यही काला बादल ऊपर हो, और कोई अपना कोई प्यारा हाथमे दीपक थमा जाएगा।  ये अपना कोई प्यारा वही है , जो तुमको ये पढ़कर दिमागमे , सबसे पेहेले आएगा।  और वोही पूरा अँधेरा उजालेमे बदल के , होठो पे मुस्कुराहट दे जाएगा।  एक समय आएगा। एक समय आएगा।               ...

Thandi Hawao Ki Dhul...(ठंडी हवाओ की धूल...)

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ठंडी हवाओ की धूल... इन् ठंडी हवाओ ने धूलको उड़ाके , कुछ बातो की याद दिलाई।  जैसे … जैसे थी वो मेरे करीब आयी।  और शर्माके नज़र झुकाई।  उसने फिर मेरे साथ , रोज़ जैसे,शाम बिताई। पर एक बात उसने मुझे कभी न बताई। थी दिक्कत उसे सास लेनेमे। पर अच्छा लगता था उसे, मेरे साथ रहनेमे। फिर …फिर क्या ? फिर ग्रहण आया उसपे कही।  थी वो बिस्तर पे , पर घर के नहीं।  सुईया  लगी हुई हाथो मे जैसे , जैसे …काँटे लगे हो गुलाब मे कही।  कहा उसने , "माफ़ करना।  हर दुआ मे याद रखना। मैं ज्यादा बाकी नहीं।  पर रखना मुझे तुम्हारे दिल मे कही।" सुना उसने , "जनाब  …क्यों नहीं ?" अगले दिन वो उस शरीर को बाकी सबके लिए छोड़ गई।  पर  … पर मुझे इन ठंडी हवाओ के धूलमे मिल गयी। इन ठंडी हवाओ के धूलमे मिल गयी।                                                                   ...

Beti...Ye Hain 'Ghar Apna'(बेटी…ये है 'घर अपना')

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बेटी…ये है   ' घर अपना' बेटी … खूब तुम रोना , खूब तुम हसना।  हसने और रोनेसे की आवाज़ ही तो, घर 'लगता' हैं अपना।  खूब तुम बिखेरना , खूब तुम समेटना।  बिखेरने और समेटनेसे ही तो, घर 'बनता' है अपना। खूब तुम खाना, खूब तुम गिराना। खाने और गिरानेसे ही तो, घर 'भरता' है अपना। खूब तुम दौड़ना, खूब तुम कूदना। दौड़ने और कूदनेसे ही तो, घर 'सजता' है अपना। खूब तुम चलना, खूब तुम रुकना। चलने और रुक्नेसे ही तो, घर 'आगे बढ़ता' है अपना। खूब तुम जागना, खूब तुम जगाना। जागने और जगानेसे ही तो, घर 'सावधान होता' है अपना। खूब तुम पढ़ना, खूब तुम लिखना। पढ़-लिखकर ...घर का नहीं ! पर नाम उँचा करना खुदका अपना। और कुछ नहीं चाहिए बस … खूब तुम रोना, खूब तुम हसना। बेटी … जिसभी घर जाओगी, घर लगेगा अपना।                                            -संकेत अशोक थानवी ॥३०/अप्रैल/१४॥

Nazar...(नज़र …)

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नज़र … नज़र कहा है तू इन् रंगो मे , ढूंढता तुझे मैं इन् रंगीली हवाओ की तरंगो  मे।  तरंग  …  तरंग की तरह चल रहे हम।  हवाओ की तरह बह रहे हम।  किनारो की तरह भीग रहे हम।  भटके राह की तरह हर एकसे नज़र मिला रहे हम।  बाग़ मे किसी भँवरे की तरह फूलो के बीच लहर रहे हम।  लहर  … लहराते लहराते , भटक गए।  एक से दूसरे और दूसरे से तीसरे जगह पहुंच गए।  जाके वहा पता चला की, हर एक फूल को अपने भँवरे पेहेले ही मिल गए।  ये देख कर , हम तिसरे से दूसरी और दूसरी से पेहेले के लिए निकल गए। निकलते हुए  …  निकलते हए आया ये खयाल : छूटी तो नहीं कोई ,एक बार ढूंढलू।  और फिर भी अगर नहीं मिले तो निगाहे तो सेकलु। सिकती निगाहे,तपती धुपमे।  ढूढ़ती तुझे,अनेको रूपमे। अनेको रूपमे  … और जब यह लगा की रूप मिल गया, क्या कहे उसकी सहेलियों को ? उसे तो पांच के बीच , और हमे अकेला छोड़ गए।  अकेले बैठे  … अकेले बैठे दूसरी के देखकर , लगा हमे वो रूप मिल गया।  पैर चलते गए ,निगाहे ...

Tasvir Aati Hain Yuhe... तस्वीर आती है युही...

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तस्वीर आती है युही... ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।  किसीसे मिलना लगता सबको हैं तक़दीर के पास।  थोड़ी हिम्मत हो अगर , तो पूरी हो सकती है हर आस।  चाहते हो उसको पाने का अहसास ? या बस.…  रखना चाहते हो उसको दिमागी तस्वीर मे युही।  ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।  चलते थे हम भी जहा ये नए जोड़े चलते है।  उसीको निभाने हम इन् मुलायम हाथो मे हथोडे सहते हैं।  इन् हथोडे का दर्द हम सहलते युही।  ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।  किसीके कोई युही नहीं करता मज़दूरी।  हम कमजोर नहीं हैं कोई।  ना हम मे आती हैं ऐसे कमजोरी।  ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।                                                    - संकेत अशोक थानवी ॥३०/०३/२०१४ ॥ 

Sochlo Tum!!(सोचलो तुम !!)

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सोचलो तुम !! सोचलो तुम ,ठंड जा रही हैं।  अब तो ,गर्मिया आ रही हैं।  बात नहीं करती हो तुम , जो मैं कहता हू "मुझे फर्क नहीं पड़ता ! "  ये कहने के बाद दिल बहुत हैं डरता।  हमारे ये तीन साल का रिश्ता , जैसे बरनी मे चावल।  इसका बनना, उसका बरनी का भरना।  रूठना तेरा , जैसे उस बरनी का हाल्ना।  फिर सम्भलना तेरा , जैसे ठोस चावल का होना।  हो गए हैं ढाई हफ्ते बात करे।  तेरे बिन ये दिन और रात मे , हम बस खयालो मे हैं मरते।  जब हमारे किताब के पिछले पन्ने पलटता हूँ मैं , थोड़ा हैं गम.…की दोनों एक साथ ज्यादा अच्छेसे मिले नहीं हैं हम।  थोड़ी ख़ुशी हैं.....क्युकी उन् पन्नो मे तू छुपी हैं।  और जो आगे के पलटता हूँ मैं.…लगता हैं डर , की शायद 'नहीं' बोलेगा परिवार।  जरुरत तो उन्हें भी हैं ,क्या पता.…  तेरे बिन कैसे चलेगा ये संसार।  बस ये सोच कर घबरा मत जाना क्युकी , हम वो कैची नहीं , जो पास जाके बागो मे नन्हेसे फूलो को काटके  मुरझा दे।  हम तो वो भटके बादल हैं , जो कोई रेगिस्ता...

Teen log...(तीन लोग ... )

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तीन   लोग   ...  तीन लोग मिलते हैं मुझसे। बस फर्क इतना हैं , की हर कोई आता हैं गलत समयपे। होते हैं मुझसे वो रोज़ रूबरू , समझ नहीं आता मैं किससे क्या कहु। पहला : पहला हैं चतुर। वो खुदको ना चाहता हैं पाना हरा , उसको तो अपना हाथ चाहिए भरा। कहता मुझसे वो , पढ़लो … लिखलो , हाथ भरलो इतना , इतना की .... दुसरो के अख़बारो मे, दुसरो के इतिहासों मे, दुसरो के दिमागों मे, अपनी कहानी छपलो, इतना .... । वो चाहता हैं धुप की सुनहरी किरणों को, सोने मे बनाना। वो चाहता हैं दुनिया को, इन मुठ्ठी मे थामना। दूसरा : दूसरा हैं अंन्धा। अन्धेरे से नहीं , चहरे से। उदास हैं वो , पर कमजोर नहीं। शर्मीला हैं वो , पर बुजदिल नहीं। कभी कही नहीं बात , कभी करी नहीं बात, बस खुदपे पछता रहा हैं वो। अगर दुरीसे चहेरा होने लगता हैं फीका अंधेर मे , सिर्फ…हाँ सिर्फ , उस चहरे का एक गुलली याद का एक कण आजाए वहा , वो बदल देगा उस अँन्धेर को रूप मे। मैं जो इसके बारे मे कहते बैठु , तो कहते जाउगा। और, वो जो मुझे 'उस' के बारे मे कहते बैठे , मैं सुनता ही जाउगा। तिसरा : तिसरा करता हैं अपने वालो की फिकर। कहता हैं वो , क्य...

Purani Chaandi(पुरानी चांदी )

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पुरानी    चांदी  उदास नहीं है हम , ना है ये उदासी भरी कविता। इन् शब्दों की स्याही मे तो वो आसु है, माना तेरे याद के सही , पर!! गम के नहीं। बात नहीं की कभी , तो ये आसु मौन के नहीं।  मनाया नहीं कभी , तो ये आसु रुठने के नहीं। पास बुलाया नहीं कभी, तो आसु दूर जाने के नहीं।  बेशक !!जानती हैं राहे तुम्हारी घर की मुझे।  इस आसु के पीछे , गलती इन् कदमो की भी नही की , हिम्मत जुटाकर रुक के ,इसने ज़बान को बोलने दिया नहीं।  सच कहु मे तो , इन् आसु के पीछे , गलती तुम्हारे आज इस जन्मदिन की हैं इसमे! की , कोई छोड़ा नहीं तरीका बधाई का मेरे पास मे।  गलती किसकी हैं ?? क्या पता।  जानकर अनंजना क्यों करती हो ?? क्या पता। जानती हो की नहीं, क्या पता।  पसंद करता था तुम्हे, प्यार का मुझे पता नहीं।  मैं तो दोस्त बनना चाहता था, कब बनुगा पता नहीं।  सौ दिन ताकू किसी मैं , तो वो थोड़ी पसंद आती हैं।  पुराने चांदी की चमक, आँखो से जल्द न जाती हैं ।  उसके लिए तो तेरी एक याद काफी हैं।...

Jeena Hain? Jeelo! | जीना हैं? जीलो!

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जीना हैं?   जीलो! हसना है? हसलो! रोको मत खुदको।  लम्हा ये बीत जाएगा, फिर कोसोगे खुदको।  गाना हैं? गा लो! सुर लगाना हैं जितना, लागलो। फिर आवाज़ मे सुर कहा गया, ये पूछोगे मुझको।  गम हैं कोई?  बाँटलो  मुझसे। उस पहाड़ का बोझ, बाँटलो मुझसे।  ये फिर तुझे क्या हुआ, ये सब लोग कहेंगे तुझको।  प्यार है किसीसे? तो रब से मत मांगना। क्यूंकि प्यार तो ऐसी चीज़ हैं , जिसकी जरुरत भी है उसको।  जा बता दे, कितना प्यार है तुझे, तेरे नूर को।  लिखना है? लिखलो। इन् हाथोसे लिखलो, समय नहीं हैं ज्यादा। यह लम्हा फिर नहीं आता।  फिर क्या, फिर इन्ही हाथोसे हाथों घरका भार उठाना है खुदको।  जिंदगी जैसी, वैसाही प्यार, वैसीही दोस्ती, लम्बी नहीं, गहरी होनी चाहिए।  इतनी गहरी की कोई खोदे उसकी गहराई, तो आखरी सुराख़ भी दूसरी दुनिया का छोटासा छेद होना चाहिए।  तस्वीर खीचना है? खीचलो ! उपकरणोंसे नहीं,...

Jaoge Jidhar...(जाओगे जिधर ...)

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जाओगे     जिधर  . . . इस देश मे जाओंगे जिधर , लगेगा सपनो मे देखा था किधर।  जाना है उचाईपे ?? क्या सपने हैं उचाइके ?? रास्ते तो रुके हुए हैं , खुदको ही चलना होगा।  सब कहते हैं रास्ते चलते हैं , कदम आगे तुमको ही रखना होगा।  यहाँ हैं अलग-अलग सबके नज़रिए , पर हैं वही दो आँखे।  यहाँ हैं अलग-अलग सबका रोज़गार , पर हैं वही दो हाथ।  इस चमन के लिए ये एकमेव-इकलोता दिल धड़कता हैं बार-बार।  और ऐसे कई चमकीले-तड़पते दिलोने दिखाए हैं चमत्कार।  कभी-कभी तो इन् दिलो की आखे नम हो जाती हैं, जब किसी को अपने बचपन , और किसी को अपने जवानी की याद आती हैं।  कुछ ने तो दिए हैं ज़हर अमानत मे , कुछ तो कही अब भी उगल रहे ज़हर जमानत पे।  इनकी करनी से हालात ये हैं, की  कभी सैकड़ो ,       कभी हज़ारो , तो   कभी लाखों की ज़हर से ; और बाकि बचे करोड़ो की खबर से ; जान भी ली हैं।  बिछड़े भाईयो के कई परिवार तड़पते हैं हरदम।  जो कभी साथ गाते थे एक ...