Sochlo Tum!!(सोचलो तुम !!)
सोचलो तुम !!
सोचलो तुम ,ठंड जा रही हैं।
अब तो ,गर्मिया आ रही हैं।
बात नहीं करती हो तुम ,
जो मैं कहता हू "मुझे फर्क नहीं पड़ता ! "
ये कहने के बाद दिल बहुत हैं डरता।
हमारे ये तीन साल का रिश्ता ,
जैसे बरनी मे चावल।
इसका बनना,
उसका बरनी का भरना।
रूठना तेरा ,
जैसे उस बरनी का हाल्ना।
फिर सम्भलना तेरा ,
जैसे ठोस चावल का होना।
हो गए हैं ढाई हफ्ते बात करे।
तेरे बिन ये दिन और रात मे ,
हम बस खयालो मे हैं मरते।
जब हमारे किताब के पिछले पन्ने पलटता हूँ मैं ,
थोड़ा हैं गम.…की दोनों एक साथ ज्यादा अच्छेसे मिले नहीं हैं हम।
थोड़ी ख़ुशी हैं.....क्युकी उन् पन्नो मे तू छुपी हैं।
और जो आगे के पलटता हूँ मैं.…लगता हैं डर ,
की शायद 'नहीं' बोलेगा परिवार।
जरुरत तो उन्हें भी हैं ,क्या पता.…
तेरे बिन कैसे चलेगा ये संसार।
बस ये सोच कर घबरा मत जाना क्युकी ,
हम वो कैची नहीं ,
जो पास जाके बागो मे नन्हेसे फूलो को काटके मुरझा दे।
हम तो वो भटके बादल हैं ,
जो कोई रेगिस्तान मे किसी फूल को पानी डाल के ठंडक पहुचादे।
जो बात नहीं कररही हो तुम मुझसे ,
गलती हमसे हुई होगी।
मैंने इतना सब कह दिया तब भी।
बोल्दो जो बोलना हैं ,
खुद मे खुदको रोक नहीं जाता।
चुप रहकर क्या बोलोगी तुम ,
कुण्डी लगाकर दरवाज़ा खोला नहीं जाता।
ठण्ड थी अबतक,
हम थे रज़ाई मे।
'शायद ' गर्मिया आ रही हैं ,
हम प्यास से मारना नहीं चाहते !
हम प्यास से मारना नहीं चाहते !
सोचलो तुम.... ठण्ड जा रही हैं ,
'शायद 'गर्मिया आ रही हैं।
---- संकेत . अशोक . थानवी ॥१२/मार्च/१४॥
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