Teen log...(तीन लोग ... )
तीन लोग ...
तीन लोग मिलते हैं मुझसे।
बस फर्क इतना हैं ,
की हर कोई आता हैं गलत समयपे।
होते हैं मुझसे वो रोज़ रूबरू ,
समझ नहीं आता मैं किससे क्या कहु।
पहला :
पहला हैं चतुर।
वो खुदको ना चाहता हैं पाना हरा ,
उसको तो अपना हाथ चाहिए भरा।
कहता मुझसे वो ,
पढ़लो … लिखलो ,
हाथ भरलो इतना ,
इतना की ....
दुसरो के अख़बारो मे,
दुसरो के इतिहासों मे,
दुसरो के दिमागों मे,
अपनी कहानी छपलो, इतना .... ।
वो चाहता हैं धुप की सुनहरी किरणों को,
सोने मे बनाना।
वो चाहता हैं दुनिया को,
इन मुठ्ठी मे थामना।
दूसरा :
दूसरा हैं अंन्धा।
अन्धेरे से नहीं , चहरे से।
उदास हैं वो , पर कमजोर नहीं।
शर्मीला हैं वो , पर बुजदिल नहीं।
कभी कही नहीं बात ,
कभी करी नहीं बात,
बस खुदपे पछता रहा हैं वो।
अगर दुरीसे चहेरा होने लगता हैं फीका अंधेर मे ,
सिर्फ…हाँ सिर्फ ,
उस चहरे का एक गुलली याद का एक कण आजाए वहा ,
वो बदल देगा उस अँन्धेर को रूप मे।
मैं जो इसके बारे मे कहते बैठु ,
तो कहते जाउगा।
और,
वो जो मुझे 'उस' के बारे मे कहते बैठे ,
मैं सुनता ही जाउगा।
तिसरा :
तिसरा करता हैं अपने वालो की फिकर।
कहता हैं वो ,
क्या होती यह दुनिया अपनेवालो के बिगर।
अपने तो वो हैं जिनका साथ ना कभी छूटेगा।
अगर छूट जाए इधर ,
तो भी मिल जायगे उधर।
इन् अपनों मे ,
एक बड़ी प्यारी हैं।
जिसने दर्द सहकर ,
हमारी ये दुनिया सवारी हैं।
ए माँ !! क्या लिखू मैं तेरे बारे मैं ??
कोई शब्द बनाया नहीं भगवान ने ,
दिया ही नहीं तुझे बया करने के लिए कोई शब्द ज़बान पे।
पेहेले को तराशा हैं 'मंजिल' ने।
दूसरे को बनाया हैं 'हम 'ने।
तिसरे को सवारा हैं 'रब'ने।
दूरसे देखकर समझ नहीं आता की,
हम हैं रब मे और मंजिल हैं हम मे।
या …
रब हम मे और हम हैं मंजिल मे।
क्या कहु तुमसे मैं,तीन लोग मिलते हैं मुझसे।
पर हर कोई आता हैं गलत समय पे।
- संकेत अशोक थानवी ॥४/मार्च/२०१४॥
An accurate description of yourself...one of your best poems till date!!
ReplyDeleteKeep writing and all the best!
Thanks Yash Pargaonkar !!
ReplyDeleteI am glad that you read .
Keep Checking ,Keep Reading surely you will find better poems.
And Share 'My Poems' as much as possible . :) :D