Ye Silsila...(ये सिलसिला..)

ये सिलसिला…






ये सिलसिला चलताही जाएगा। 

ये तुझे सुबह सबसे पेहेले देखने का ख़्वाब,
हररोज़ बढ़ता ही जाएगा।
ये तेरे बात करने का तरीका वक़्तसे वक़्त तक बदलता ही जाएगा।

पेहेले बात …
पहेली मुलाकात तो अबतक याद है,
हमने बो दिए थे बीज। 
हम तो डाल रहे थे पानी,
बना रहे थे नाते। 
अब लगता है उन्ही पानीसे,
उग रहे है काटे। 

कही इन् काँटोंके पीछे दूरिया तो वजह नहीं ?
फर्क तो सिर्फ नज़रियों का है।
खुदको पूछोगे तो मिलूँगा वही।
नहीं तो फिर सामने भी रहु अगर ,
तो दिखूँगा नहीं।
कही इन् के पीछे ,
ये खून के नाते वाले तो नहीं।
देखो क्या दिन आगया है,
की इन् खून के नाते वालो को 'रिश्तेदार' कहते थे हमही।

क्या इनके पीछे रिवाज़ों का फर्क नहीं?
हंसी आती है अबतक!
इक्कीसवी सदी मे हम है। 
पर अब भी कुछ लोग कर रहे ,
तू-तू और मैं-मैं। 

क्या इनके पीछे हैं आगे की सोच ?
डरना मत इससे ये तोह है छोटीसी बात। 
मेरी तो बस ये हैं सोच ,
की इन् पैरो मे चलने के लिए ,
और इन हाथो मे तुझे पकड़ने के लिए,
कभी न आएगी मोच।

फिर भी अगर ढूंढ न पाए हम वजा। 
सबसे बड़े नकमियाब होगे हम। 
इससे बड़ी हमारे लिए क्या होगी सजा। 
इससे बड़ा हमारे लिए क्या होगा गम। 

और अगर ये सिलसिला रुक जाएगा। 
ये रिश्ता इन रोज़के संदेशो मे बस जाएगा। 
बस एक गुज़ारिश है !
की किसी के साथ फिर कभी दिखाई न देना। 
और फिर भी अगर मिल जाओ ,
तो हमारा नाम 'उस' तरीके से कभी ले न लेना। 

-संकेत अशोक थानवी ॥१२/अप्रैल/१४॥

Comments

Popular posts from this blog

ज्ञानम परमं बलम - Jñānam Param Balam

कहानी (Kahani)

मिलना (milna)