Thandi Hawao Ki Dhul...(ठंडी हवाओ की धूल...)
ठंडी हवाओ की धूल...
इन् ठंडी हवाओ ने धूलको उड़ाके ,
कुछ बातो की याद दिलाई।
जैसे …
जैसे थी वो मेरे करीब आयी।
और शर्माके नज़र झुकाई।
उसने फिर मेरे साथ , रोज़ जैसे,शाम बिताई।
पर एक बात उसने मुझे कभी न बताई।
थी दिक्कत उसे सास लेनेमे।
पर अच्छा लगता था उसे,
मेरे साथ रहनेमे।
फिर …फिर क्या ?
फिर ग्रहण आया उसपे कही।
थी वो बिस्तर पे ,
पर घर के नहीं।
सुईया लगी हुई हाथो मे जैसे ,
जैसे …काँटे लगे हो गुलाब मे कही।
कहा उसने ,
"माफ़ करना।
हर दुआ मे याद रखना।
मैं ज्यादा बाकी नहीं।
पर रखना मुझे तुम्हारे दिल मे कही।"
सुना उसने ,
"जनाब …क्यों नहीं ?"
अगले दिन वो उस शरीर को बाकी सबके लिए छोड़ गई।
पर …
पर मुझे इन ठंडी हवाओ के धूलमे मिल गयी।
इन ठंडी हवाओ के धूलमे मिल गयी।
-संकेत अशोक थानवी ॥२१/०१/१४॥
shaandaar
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