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क्या समझाओगी ?( Kya Samajhaogi? )

क्या समझाओगी ? तू है कितनी खूबसूरत , तुझे न पता।  हो गई धड़कन क्यों तेज़ इतनी , मुझे न पता। मतलब कब समझोगी तुम मेरी कविताओ का , मुझपे जादू हो गया इन नशीली अदाओँका।  अँधा कर दिए तुमने।  अँधेरे से नहीं , चेहरेसे। जब -जब आती हो सामने , हो जाती हो सुन्दर पहलेसे।  किसी जवानको महसूस होता है बुढ़ापा,  किसी बूढ़ेको महसूस होती है जवानी। दोनों मे बस फर्क इतना है , की दूसरेके हाथ मे है मनचाहा हीरा, पहले के आखो मे है कोई तस्वीर सुहानी।  ये हो रहा मुझे क्या , कोई तो बताओ।  ये अँधा शायद बढ़ रहा खाई तरफ , कोई तो रुकाओ।  कहावत है , की समय के सामने कुछभी नहीं टिकता।  लेकिन मुझे , मुझे तुम्हारे साथ मे 'समय' इस शब्द का अर्थ नहीं दिखता।  खुदा जाने खुदमे इतना क्या गुरुर है।  अँधा तो पहले हे कर दिए तुमने। लेकिन अब होता अच्छे रूप रंगसे ज्यादा अच्छे  स्वभाव से सुकून है।  ज्यादातर दुखोकी वजह सिर्फ नज़रिये का फर्क है।  तुम जिसे देखो , वो तुम्हे कैसे देखे ? हकीकत होती...

दान (Daan)

दान (Daan) मनालो तुम खुद्की दिवालीसे पहले किसीकी दिवाली।  देदो तुम किसीके चेहरे पे खुशहाली।  आतिशबाजी नहीं होती इसमें , न बनाते है इसमें कोई रंगोली।  दिखती है इसमें तो दिलो की अमीरी।  बनालो तुम किसी अंजानको , बिना मिले अपनोसा करीबी।  जो दुसरो की मदद करे , वही तो होता इंसान है। सब भूल गए शायद , जिसे हम कहते दान है।  क्या होता है दान ? दान नहीं कोई लेख जो लिखा हो संविधान मे।  और ना हे वो कोई वस्तु जो मिलती हो इनाम मे। इसके होते अनेको रूप है , करो तो मिल जाएगा इसके विराट रूप का प्रमाण।  दान तुमसे किसी अजनबीको दिया गया एक अदृश्यसा वरदान। - संकेत अशोक थानवी ॥०८/१०/१५॥ 

दौड़ (Daud)

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दौड़  देख! देख! देख! देख! कितना नाराज़ है। खुदको ही आक कम, कितना लाचार है। बुरे सोच की, ये उंगलिया जो ताकती। बड़ा तू खुदको मान को, जो उंगलिया वो काटती। दौड़... दौड़ है ये, भाग तू। इस बातको न नकार तू। रुकना मत, या आगे हार है ये। शुरवात कर, या अभीसे मात है ये। मुकाम नहीं, ये एक कदम है। जशन नाकर, ये सब भरम है। चाहिए अब आराम और ज़िन्दगी खस्ती, या अभी तप और आगे ज़िन्दगी हस्ती। देखले चारो तरफ, है विकल्पों का घेरा। सोचले मानव, चुनाव है तेरा। जंग जैसा है ये, लेकिन जीवन का दाव है। इसमें बाज़ी ना लगाने से बेहतर खाना घाव है। दौड़ले,  तुझे मिलेंगे आगे कई अच्छे - बुरे पड़ाव है। -संकेत अशोक थानवी ॥२६/०९/१५ ॥  Photo by  Kunj Parekh  on  Unsplash

जूनून | Junoon

जूनून Dedicated to  BITS Pilani, Pilani Campus Junoon Sports Event for Specially-abled. ये हौसला है मेरा, कमजोरी नहीं। मुझे चूमना है उस चोटी को, जिसके दूर निचे बादल हो कही। ये मेरी रोज़ की मामूली जंग है. तुम्हारे लिए ये जैसी विश्वयुद्ध की पुकार। जीभ नहीं तो क्या, मुझमे में हैं सिंह की ललकार। ये जो विश्वास का बाँध भर रहा, देखना मुझे खुद को महान।  तुम लोग जैसे चल नही सकता तो क्या, मुझे में हैं गरुड़ की उड़ान। ना समझना की मुझमे कोई कमी हैं । तुम्हारी थाली भरी होने के बाद भी तुम्हे भूक नहीं हैं ।  ये जूनून हैं मेरा, मेरी मज़बूरी नहीं हैं । - संकेत अशोक थानवी ॥ १२/०९/२०१५ ॥

Kal aaj aur kal (कल , आज और कल)

कल , आज और कल ये दो पिता , दो बेटे और तीन पीढ़ियों की कहानी हैं।  सिर्फ मेरी आपकी नहीं दोस्तों , शायद ये घर घर की कहानी हैं।  दादा बैठे सामने घरमे , वो शान है घरकी  बात सबने मानी है।  बैठे हो बेटा-पोता किधरभी , रखता वो सबकी कोतवलसी निगरानी है।  कभी कभी इन् सबके बीच , करते वो सबपे अपनी 'दादा'गीरी वाली मनमानी है।  मिले है कइयोंसे अस्सी साल मे , आज मिलती सबकी सलामी है।  पिता… पिता देखते है घरका मजमा , वो घरमे सबसे ज्ञानी है।  आता उन्हें बड़ी-बड़ी मुसीबतको , जादुई तरीकेसे छुपानी है। पुल है घरके वो अभी , जिसके एक छोर पर नयी और दूसरे पर चीज़े पुरानी हैं।  संभाला है दादा का कारोबार , बात सिर्फ बेटे की नहीं पर बड़ोकी मानी है। मेरा तो है ये मानना  … की कारोबार और परिवार साथ हो अगर , तो जैसे बारूदके साथ चिंगारी है।  संभाला ना जाए ढंगसे , तो सिर्फ खुदको तो क्या सबको होती हानी है।  पर अगर हो सहीसे इस्तमाल इसका , तो होती रोज़ दीवालीवाली आतिशबाज़ी है।  सब ...

Haa ho tum wohi (हां हो तुम वो ही)

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हां हो तुम वो ही हां हो तुम वो ही  मगर   कम खुद ना आंकना चाहे कोई भी आए   डगर ऐसी की विश्वास डूबने लगे  मगर    खुद मे ही मिलेगी बढ़ती ज्वाला  हर पहर   दुनिया मे होता है  एक ग़दर   का हिस्सा है तुम्हारे विचार जो है  अमर   कथा से प्रेरित तो क्या फिक्र करते हो आप कल की  ए कुंवर   की तरह युवा और वायु की तरह तुम हो जबर   और अहंकार मिलके बनाते हैं क्रूरता की  कमर   दुखने वाली नहीं है तुम्हारी उम्रमे बनो तुम एक  भ्रमर की भाति करते रहो जीवन का  सफर मे करना दुसरो के विचारो की  कदर ,  प्रेम और महेनत से मिलेगा जीवन मे  शिखर   हो इतना ऊचा की डूबा ना पाए कोई मुसीबतकी  लहर   पर तैरते वक़्त रखना किनारेपर भी  नज़र से ही तो मिलते हैं रस्ते जैसे हो रेगिस्तान  मे  नहर    बनाने मे लगती हैं खूब  कसर   करनेसे नहीं मिलते ज़िन्दगी मे  ज़हर मिल भी जाए किसी हालात मे  अगर   ऐसेकी ढा रहे ...

Vo Chupaarustam (वो छुपारुस्तम)

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वो छुपारुस्तम   बहन उसे डराए कभी जो , तो कहते बहन को सब माँ दुर्गा। और वो कभी डराए बहन को, सब कहते उसे अत्याचारी मामा कंस।  पर वो हैं छुपारुस्तम , वो तो है मनसे हंस।  ना दिगई उसे कोई आज़ादी , सबके सामने रोनेकी।  उसे तो दिया गया , सिर्फ और सिर्फ आजीवन मेहनत करने का दंड।  पर वो हैं छुपारुस्तम , रखता वो इस सबको अपने मनमे बंद।  कह नहीं सकता किसीको "मुझे बच्चोको सँभालने जाना हैं ", हसी उड़ायेंगे दफ्तरमे सब।  आज पूरी दुनिया करती हैं , बचपनसे माँ - माँ।  पर वो हैं  छुपारुस्तम , ऐसेही नहीं मिलती सबकी वाह-वाह।  कोई मानेगा इसको की , अत्याचार उसपे भी होता हैं। कोई मानेगा इसको की , बलात्कार उसका भी होता हैं।  कोई नहीं करता विश्वास।  पर वो हैं छुपारुस्तम , खुद चुपहोके दुसरोको नहीं करता उदास।  झाक्के देखो कभी उसमे , जो जल्द सुबहसे देररात तक दफ्तरमे होता है।  झाक्के देखो कभी उसमे, जो साठ का होके आठकी हरकते करता हैं।  झाक्के देखो कभी उसमे, ...