दौड़ (Daud)


दौड़ 


देख! देख! देख! देख!
कितना नाराज़ है।
खुदको ही आक कम,
कितना लाचार है।

बुरे सोच की,
ये उंगलिया जो ताकती।
बड़ा तू खुदको मान को,
जो उंगलिया वो काटती।

दौड़...
दौड़ है ये,
भाग तू।
इस बातको न नकार तू।
रुकना मत,
या आगे हार है ये।
शुरवात कर,
या अभीसे मात है ये।

मुकाम नहीं,
ये एक कदम है।
जशन नाकर,
ये सब भरम है।

चाहिए अब आराम और ज़िन्दगी खस्ती,
या अभी तप और आगे ज़िन्दगी हस्ती।

देखले चारो तरफ,
है विकल्पों का घेरा।
सोचले मानव,
चुनाव है तेरा।

जंग जैसा है ये,
लेकिन जीवन का दाव है।
इसमें बाज़ी ना लगाने से बेहतर खाना घाव है।
दौड़ले, तुझे मिलेंगे आगे कई अच्छे - बुरे पड़ाव है।

-संकेत अशोक थानवी ॥२६/०९/१५ ॥ 

Photo by Kunj Parekh on Unsplash

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