Haa ho tum wohi (हां हो तुम वो ही)

हां हो तुम वो ही




हां हो तुम वो ही 
मगर 
कम खुद ना आंकना चाहे कोई भी आए  
डगर
ऐसी की विश्वास डूबने लगे 
मगर  
खुद मे ही मिलेगी बढ़ती ज्वाला 
हर पहर 
दुनिया मे होता है 
एक ग़दर 
का हिस्सा है तुम्हारे विचार जो है 
अमर 
कथा से प्रेरित तो क्या फिक्र करते हो आप कल की 
कुंवर 
की तरह युवा और वायु की तरह तुम हो
जबर 
और अहंकार मिलके बनाते हैं क्रूरता की 
कमर 
दुखने वाली नहीं है तुम्हारी उम्रमे बनो तुम एक 
भ्रमर
की भाति करते रहो जीवन का 
सफर
मे करना दुसरो के विचारो की 
कदर
प्रेम और महेनत से मिलेगा जीवन मे 
शिखर 
हो इतना ऊचा की डूबा ना पाए कोई मुसीबतकी 
लहर 
पर तैरते वक़्त रखना किनारेपर भी 
नज़र
से ही तो मिलते हैं रस्ते जैसे हो रेगिस्तान  मे 
नहर  
बनाने मे लगती हैं खूब 
कसर 
करनेसे नहीं मिलते ज़िन्दगी मे 
ज़हर
मिल भी जाए किसी हालात मे 
अगर 
ऐसेकी ढा रहे हो तुमपे 
कहर 
तोह रखना याद की हां हो तुम वो ही 
मगर
कम खुद ना आंकना चाहे कोई भी आए 
डगर...

- संकेत अशोक थानवी ॥ ०७/जुलाई/२०१५॥ 


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