तू क्या पा लेता ? (Tu kya paa leta ?)
तू क्या पा लेता ?
थोड़ा रूककर आराम करके ,
ज़िन्दगी के इन् पहले पड़ावों में क्यों थका महसूस कर रहा ?
बचपन से अभतक सारे इच्छा के बादल गुज़रते हैं उस चोटी से ,
कौन मुझे रोक रहा ?
उस चोटी की कीमत पसीना है ,
तुझे अब पता चला।
ये कठोर उदास दिनों में ,
क्या ज़रूरी नहीं साथी ?
ऐसे धूपभरे पथरीले चादवपे ,
क्यों ज़रूरी है सही साथी ?
उसके हौसले डगमगाने पे ,
तुम्हारी हिम्मत थर-थराती।
दफ्तर में काम करते वक़्त ,
मेट्रो-लोकल में किताब पढ़ते वक़्त ,
चौराह पे ठहरते वक़्त ,
मोहल्ले से निकलते वक़्त ,
क्या कोई नहीं मिला तुम्हे सालोसे इन् राहो में?
अकेले हो?.. ऐसा लग रहा ,
क्या अकेलापन भ्रम नहीं ऐसे चाड़व की राहो में?
देख आसपास ये अनजाने पुराने पेड़ ,ये ठंडी हवा , ये उतरनेवालो की मुस्कराहट ,
सब यार है तेरे थकान भरे सारे कदमो में।
ऑफिस में लिफ्ट से ऊपर की मंज़िल पे जाते वक़्त ,
क्यों मैं घबरा रहा ?
सामनेवाला मुझसे पहले चोटी ना पहुंच जाये ,
ये ख्याल क्यों मुझे सता रहा ?
बोहोत ज्यादा सूकरक्षित है तू,
शांति रख और उदास हो !
अनेको चल चुके जिस रास्ते पे तू है जहा।
आलीशान आदते त्यागके और कड़े परिश्रम करके भी नहीं पुरे हो रहे सपने ,
क्या ये सारी बाते मैंने फ़िज़ूल में गवाई है ?
घुटने दुखाकर पसीने में भीगे हाफ्ते आया मैं ये कोसो चल कर ,
आखरी कोस क्यों ये खड़ी चढाई हैं ?
आत्मविश्वास घबराकर काँप रहा तेरा ,
जो कर रहा तुझसे तेरे ही मेहनत की बुराई हैं।
बुढ़ापे में ही सही, इन् सालो बाद ये सपने पुरे हो रहे,
मैं ओर क्या ही पा लेता ?
सूरज ढलते समय ही सही ,पर ये बादल छू लिए मैंने ,
मैं और क्या ही देख लेता ?
रात में तुम्हारे तम्मनाओ के बादलो के कई ऊपर,
ये तारो के टिमटिमाते-चमकते समुन्दर को देख ,
बचपन में बादल छोड़ उसे चुनता ,
तो, तू वो पा लेता।
- संकेत अशोक थानवी ||८ /६ /२०१६ ||
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