जननी (Janani)
जननी
पहलेसे लिखे इतने खबरों - लेखो - कविताओ के बिच,
मेरी इस कविता से क्या हो जाएगा ?
जहा शक्ति मर्दानगी में नापते है ,
'शक्ति' एक स्त्रीलिंग है ,
कौन उन्हें बताएगा ?
कौन उन्हें बताएगा ?
लोगोकी गलती नहीं जब शब्द ही बदल जाए ,
बहार निकलने को डर रही तू जिस रात में ,
उसे निशा भी कहते ,
ये कौन याद दिलाएगा ?
मर्दानगी की हुंकार देने वाले देख कितना डरते तुझसे ,
मार देते तुझे जन्म के पहले,
ऐसे में तेरा अस्तित्व कौन बचाएगा ?
ऐसे में तेरा अस्तित्व कौन बचाएगा ?
अन्न देने वाली धरती स्त्री है ,
शायद इसीलिए तुझे चूल्हा पकड़ाते ,
ज्वालामुखी और भूकंप भी है तुझमे ,
ये कौन उन्हें स्मरण कराएगा ?
ज्वालामुखी और भूकंप भी है तुझमे ,
ये कौन उन्हें स्मरण कराएगा ?
हरपल किसी द्रौपदी का चीरहरण हो रहा ,
लेकिन महाभारत कही नहीं।
जब हो तेरे अपने रखवाले पांडव लड़ने के लिए शर्मिंदा ,
तो दुर्योधनसे कौनसा सखा कृष्ण तुझे बचाएगा ?
तो दुर्योधनसे कौनसा सखा कृष्ण तुझे बचाएगा ?
जब है हैवानियत का तेजाब किसीकी सोच में गढ़ा ,
अनजानसा बनकर दिनभर स्कार्फ़से ढककर छुपके ,
हमला कबतक होने से रह जाएगा ?
सफ़ेद दाढ़ी वाले ये झुर्री भरे
समाज की सोच को पुनर्जन्म देना जरुरी है अब।
सिर्फ तू जननी है ,
क्या ये तुझसे हो पाएगा ?
क्या ये तुझसे हो पाएगा ?
- संकेत अशोक थानवी || २४/६/१७ ||
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