शाम(Shaam)

शाम


मेरे तीन साल के दिन का उजाला घट रहा,
अँधेरे के पहले की सुहानी शाम है ये। 

इतने लोगो के साथ बिताए अनगिनत लम्हे लिखने की ख़ुशी बहुत है,
लेकिन शायद कुछ ज्यादा ही छोटी किताब है ये। 

हसना-रोना इकरार-इनकार गपशप-बाते मिलके बनाते है इस कलम की स्याही को,
सालो बाद भी ऐसे ही रहेगी जैसे पहले बारिश की सुगंध है ये। 

ए तकदीर ! किसी को इतना खुश नाकर की उतना खुश रहने की आदत हो जाए,
भिगाकर मुझे जानेवाली समुंदर की लहर है ये। 

कुछ कहते की खुले दिमाग से सोचके देखू की है ये मामूली सीधी-साधी बात,
मेरे लिए तो खुले हाथो से सीधी लकीर खीचना है ये। 


- संकेत अशोक थानवी ॥ ०८/०३/१६॥ 

Comments

Popular posts from this blog

ज्ञानम परमं बलम - Jñānam Param Balam

कहानी (Kahani)

मिलना (milna)