Safar(सफर)
सफर
ये सफर हम दोहरयगे बार बार।
याद करेगी ये आँखे इन् लम्हों को ज़िन्दगी के पार।
सिर्फ उफनती लहरें याद रहती है किसी नदी के बहाओ मे।
हड़बड़ाहट के लम्हे बच जाएंगे हमारी धूल खाती किताब मे।
मिलेंगे तुझे कई उलझे मोड़ रस्ते मे तेरे।
पूछना तो पड़ेगा की किस रास्ते है मेरी मंझिल दोस्त मेरे।
गिने चुने दिन का सफर ,समय ज्यादा नहीं।
सबकुछ करने के बिच बोहत छूट न जाये कही।
बदल जाता है रिश्तों का पैमाना।
फिर भी याद रखना सिर्फ एक दूसरे का हसाना।
शांति के लिए बेचैन होने की जरुरत नहीं राह मे।
सफर के मझे लेलो तुम मंझिल के इंतज़ार मे।
- संकेत अशोक थानवी ॥ २६/०३/१६ ॥
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