सच (Sach)
सच (Sach)
उस हंसी के निचे कोई बात है खुदमे।
सच छुपाना ,
खुदमे छुरी घुसाने बराबर।
छुरी न निकले ,
तो खुदको खुदही मारने बराबर।
तुम किसी एक को हर एक सच क्यों नहीं बोलते।
बताते क्यों नहीं की तुम किसीपे भी इतना विश्वास नहीं करते।
बोलके देखो मुझे ,
न करना पड़ेगा कुछ हिम्मत जुटाने के लिए।
एक बात बतादु तुझे ,
मै किसीको गलत समझता नहीं कोई बात बताने के लिए।
बोल्दो जो बोलना है ,
खुदमे खुदको रोका नहीं जाता।
चुप रहकर क्या बोलोगे तुम ,
कुण्डी लगाकर दरवाज़ा खोला नहीं जाता।
अजीब लगेगा ये पढ़के तुम्हे ,
पर हे ये भी सचही।
ये तो सच का छुरा निकल रहा मुझसे ,
छुरा निकलने वाले तुम्ही।
-
संकेत अशोक थानवी ॥१५/१२/२०१५॥
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