बच्चा(Baccha)
बच्चा(Baccha)
मोरका पंख देखा है कभी?
कितना सुन्दर ,
कितना नाजुक
और कितना रंगीन।
कुछ ऐसाही था मेरा बचपन।
नहीं पता था क्या होती कमी।
आशाओका था मैं धनी।
नहीं पता था भूक-चोट को छोड़के ,
क्यों आती थी बड़ो की आखो मे नमी।
क्यों हस रहे हो ?
इसका जवाब न होता कभी।
कोई किसेभी डाटे अगर जो घरमे ,
आता मुझे अपने आखोंका नल बहाना।
मुझे तो नहीं आता था ,
किसी डरपोक बिल्ली को भी भागाना।
ना थी कोई योग्यता मित्रताकी ,
गुड्डा-झाड़ू-ऑटो भैया अन्य सब से थी मेरी दोस्ती।
दोस्ती का मतलब नहीं पता था तब ,
लेकिन नहीं थी आज जैसी किसीसे मतलबी दोस्ती।
अगर एक छोटे बच्चेकी मासूम-मुरतके सांचे मे डालोगे पूरे दुनियाकी शोहरत को पिघलाके ,
ना भर पाओगे उसके पैरोकी छोटी ऊँगली।
समझ जाओगे वो बच्चा कितना दिव्य,
और ये दुनिया कितनी धुंदली।
-
संकेत अशोक थानवी ॥२६/१२/२०१५ ॥
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