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Showing posts from August, 2014

Tasvir Aati Hain Yuhe... तस्वीर आती है युही...

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तस्वीर आती है युही... ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।  किसीसे मिलना लगता सबको हैं तक़दीर के पास।  थोड़ी हिम्मत हो अगर , तो पूरी हो सकती है हर आस।  चाहते हो उसको पाने का अहसास ? या बस.…  रखना चाहते हो उसको दिमागी तस्वीर मे युही।  ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।  चलते थे हम भी जहा ये नए जोड़े चलते है।  उसीको निभाने हम इन् मुलायम हाथो मे हथोडे सहते हैं।  इन् हथोडे का दर्द हम सहलते युही।  ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।  किसीके कोई युही नहीं करता मज़दूरी।  हम कमजोर नहीं हैं कोई।  ना हम मे आती हैं ऐसे कमजोरी।  ये दिन और रात मे युही , तस्वीर आती है युही।                                                    - संकेत अशोक थानवी ॥३०/०३/२०१४ ॥ 

Sochlo Tum!!(सोचलो तुम !!)

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सोचलो तुम !! सोचलो तुम ,ठंड जा रही हैं।  अब तो ,गर्मिया आ रही हैं।  बात नहीं करती हो तुम , जो मैं कहता हू "मुझे फर्क नहीं पड़ता ! "  ये कहने के बाद दिल बहुत हैं डरता।  हमारे ये तीन साल का रिश्ता , जैसे बरनी मे चावल।  इसका बनना, उसका बरनी का भरना।  रूठना तेरा , जैसे उस बरनी का हाल्ना।  फिर सम्भलना तेरा , जैसे ठोस चावल का होना।  हो गए हैं ढाई हफ्ते बात करे।  तेरे बिन ये दिन और रात मे , हम बस खयालो मे हैं मरते।  जब हमारे किताब के पिछले पन्ने पलटता हूँ मैं , थोड़ा हैं गम.…की दोनों एक साथ ज्यादा अच्छेसे मिले नहीं हैं हम।  थोड़ी ख़ुशी हैं.....क्युकी उन् पन्नो मे तू छुपी हैं।  और जो आगे के पलटता हूँ मैं.…लगता हैं डर , की शायद 'नहीं' बोलेगा परिवार।  जरुरत तो उन्हें भी हैं ,क्या पता.…  तेरे बिन कैसे चलेगा ये संसार।  बस ये सोच कर घबरा मत जाना क्युकी , हम वो कैची नहीं , जो पास जाके बागो मे नन्हेसे फूलो को काटके  मुरझा दे।  हम तो वो भटके बादल हैं , जो कोई रेगिस्ता...

Teen log...(तीन लोग ... )

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तीन   लोग   ...  तीन लोग मिलते हैं मुझसे। बस फर्क इतना हैं , की हर कोई आता हैं गलत समयपे। होते हैं मुझसे वो रोज़ रूबरू , समझ नहीं आता मैं किससे क्या कहु। पहला : पहला हैं चतुर। वो खुदको ना चाहता हैं पाना हरा , उसको तो अपना हाथ चाहिए भरा। कहता मुझसे वो , पढ़लो … लिखलो , हाथ भरलो इतना , इतना की .... दुसरो के अख़बारो मे, दुसरो के इतिहासों मे, दुसरो के दिमागों मे, अपनी कहानी छपलो, इतना .... । वो चाहता हैं धुप की सुनहरी किरणों को, सोने मे बनाना। वो चाहता हैं दुनिया को, इन मुठ्ठी मे थामना। दूसरा : दूसरा हैं अंन्धा। अन्धेरे से नहीं , चहरे से। उदास हैं वो , पर कमजोर नहीं। शर्मीला हैं वो , पर बुजदिल नहीं। कभी कही नहीं बात , कभी करी नहीं बात, बस खुदपे पछता रहा हैं वो। अगर दुरीसे चहेरा होने लगता हैं फीका अंधेर मे , सिर्फ…हाँ सिर्फ , उस चहरे का एक गुलली याद का एक कण आजाए वहा , वो बदल देगा उस अँन्धेर को रूप मे। मैं जो इसके बारे मे कहते बैठु , तो कहते जाउगा। और, वो जो मुझे 'उस' के बारे मे कहते बैठे , मैं सुनता ही जाउगा। तिसरा : तिसरा करता हैं अपने वालो की फिकर। कहता हैं वो , क्य...

Purani Chaandi(पुरानी चांदी )

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पुरानी    चांदी  उदास नहीं है हम , ना है ये उदासी भरी कविता। इन् शब्दों की स्याही मे तो वो आसु है, माना तेरे याद के सही , पर!! गम के नहीं। बात नहीं की कभी , तो ये आसु मौन के नहीं।  मनाया नहीं कभी , तो ये आसु रुठने के नहीं। पास बुलाया नहीं कभी, तो आसु दूर जाने के नहीं।  बेशक !!जानती हैं राहे तुम्हारी घर की मुझे।  इस आसु के पीछे , गलती इन् कदमो की भी नही की , हिम्मत जुटाकर रुक के ,इसने ज़बान को बोलने दिया नहीं।  सच कहु मे तो , इन् आसु के पीछे , गलती तुम्हारे आज इस जन्मदिन की हैं इसमे! की , कोई छोड़ा नहीं तरीका बधाई का मेरे पास मे।  गलती किसकी हैं ?? क्या पता।  जानकर अनंजना क्यों करती हो ?? क्या पता। जानती हो की नहीं, क्या पता।  पसंद करता था तुम्हे, प्यार का मुझे पता नहीं।  मैं तो दोस्त बनना चाहता था, कब बनुगा पता नहीं।  सौ दिन ताकू किसी मैं , तो वो थोड़ी पसंद आती हैं।  पुराने चांदी की चमक, आँखो से जल्द न जाती हैं ।  उसके लिए तो तेरी एक याद काफी हैं।...