कल का उत्तर - kal ka uttar
कल का उत्तर
कंकड़ डूबा नपता नहीं समंदर।
'शायद' और आज में स्वयं-सत्य का अंतर।
'शायद' और आज में स्वयं-सत्य का अंतर।
अंतर को हर्ष-सम्प्पति में माप।
सस्ते से मेहेंगे में छांट।
सस्ती ख़ुशी का दाम समय।
लत में खुदका खुदसे बढ़ता भय।
फिर, किराये पर बिकती प्रज्ञा।
बेघर भटकती भुकी संज्ञा।
कंगाल संज्ञा, भय का भूत धनी।
अज्ञान से विश्वास की कमी।
विश्वास का पौधा सूखता-मुरझाता।
जीवित रखे उसे जिज्ञासा।
जिज्ञासा की शर्त भ्रमण।
उतर पानी में, गिरा तू कंकड़।
शायद, तभी नपे समंदर।
- संकेत अशोक थानवी ||०६/०९/२०२० ||
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