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वर्णान्ध - colorblind

वर्णान्ध क्या चाहिए मुझे? मुझे चाहिए मतलब। मतलब जो हो मेरी सीमाएं। सीमाएं, वो रेखाएं, जो मुझे बनाये। खाली सफ़ेद कागज़ हूँ। खुदके साये भी है पराये। कोई जो लिखे मुझपे, अपनी कविता मुझे बनाये।  मैं बनु वो रचना किसीकी, जिसके ख्याल से वो मुस्कराये।  जैसे हो कोई मोरपंख, वो किताब के बीच छुपाये। छोड़े वो छाप मुझपे।  मैं हूँ वर्णान्ध ।  मेरे गुम रंगो को, बून्द बून्द कर वो भराये।  - संकेत थानवी 

मिलना (milna)

मिलना प्यार, एक गहरा शब्द। चाहत की बात। हांथो से, होठों से, छूने की बात।  सामने वाली कुर्सी को देखु, चाय के प्याले में सुबह की यादे। आँखे मूंद लम्बी सांसे, बाकि टेबल पे जोड़ो को देखु, मुझे घूरती तुम्हारी निगाहे।  घूंट घूंट में बातो को सुन्ना।  सबको मासूम चेहरे से ठगना। खिलखिलाने की आवाज़ में, आखो से कहना। गलती से उंगलियों का हांथो को छूना।  फिर थमी सांसे मुस्कुराती, धकधकी में खुदको पाती।  एक सांस में प्याला हुआ खली।  दोनों को पता की रात है बाकी।  रुकने के लिए, गपशप का बहाना।  चाहत के लिए, मिलने का बहाना।  - संकेत थानवी 

कल का उत्तर - kal ka uttar

कल का उत्तर कंकड़ डूबा नपता नहीं समंदर। 'शायद' और आज में स्वयं-सत्य का अंतर। अंतर को हर्ष-सम्प्पति में माप। सस्ते से मेहेंगे में छांट। सस्ती ख़ुशी का दाम समय। लत में खुदका खुदसे बढ़ता भय। फिर, किराये पर बिकती प्रज्ञा। बेघर भटकती भुकी संज्ञा। कंगाल संज्ञा, भय का भूत धनी।  अज्ञान से विश्वास की कमी।  विश्वास का पौधा सूखता-मुरझाता।  जीवित रखे उसे जिज्ञासा।  जिज्ञासा की शर्त भ्रमण। उतर पानी में, गिरा तू कंकड़।  शायद, तभी नपे समंदर।  - संकेत अशोक थानवी ||०६/०९/२०२० ||