वो | vo
वो
हत्यारा उसी का ढोंगी सेवक बन जाएगा।
इतिहास बदलने का इतिहास वो फिरसे दोहराएगा।
मनोरंजन की आड़ में हमारे विचार भ्रमित कर बदल जाएगा।
हमे आपस में लड़ाकर वो मलाई ले जाएगा।
लगाकर आसान क़र्ज़ की लत, वो ज़मीन-धन-सोच-शांति सब ले जाएगा।
पैसे बचाने से वंचित रख वो हमे दबाएगा।
कम कमाई, मेहेंगी पढाई और छोटी नौकरी के बिच कौन दिमाग चलाएगा।
आलोचक और नए प्रतिदंद्वी को कोई मंच न मिल पाएगा।
कली बन वो घर में घुस धीरे-धीरे ज़हर रूप दिखाएगा।
विकल्प तय करने वाला, खेल शुरू हो ने से पहले जीत जाएगा।
राज चलने वालो की वो बोली अक्सर लगाएगा।
कभी-कभी एक सिर दूसरे सिर को जान-बूझकर अच्छा बनाएगा।
ये होता था, होता है और, शायद, होता रहेगा।
छोटे-बड़े अनेको सिर वाला साँप, एक-एक कर हमे डस जाएगा।
ये न कोई एक आदमी।
आदमी तो सिर्फ है एक चेहरा।
चेहरा जो बना रहे वो विष भरे प्राणी।
गली से लेकर देश-दुनिया तक चेहरे की दुकानों का डेरा।
- संकेत अशोक थानवी || ३१/१२/२०१८ ||
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Photo by chuttersnap on Unsplash
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