सम्मान (samman)
सम्मान जिस गली में भेड़िये हो, उसमे क्या डर के आगे जीत है? तन-धन जो भक्ष्ते, वो किसी को न बक्शते। लार टपकती उनसे टप-टप, दिल घबराता हमारा धग-धग। क्या मैं आज किसीका शिकार हूँ? काम-क्रोध-लोभ-मद-मोह-मत्सर का कौन त्याग करे? दूसरे के जीवन का हम स्वार्थी क्या सम्मान करे? शिकार जो मैं आज हूँ, कल शायद भेड़िया। अचल शिला नहीं हम कोई, समय भाति बहते रूप है। विनाश काले विपरीत बुद्धि। दूसरे पे ऊँगली उठाकर, खुदके मानक गिरा दिए। - संकेत अशोक थानवी || ३०/११/२०१९ ||