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Showing posts from 2017

स्वभाव (shavabhav)

स्वभाव   अहसासों के कॉपीराइट के बिच , असेवेदनशीलता है बढ़ रही। साफ़-सुथरे  बेरोकटोक बेहेनेवाली इन् भावो की तरंगो में , पत्थरोकी दीवार से इसमें अब काई है जम रही। जन्मती , पनपती, निखरती थी इसमें चमकती मछलिया, अब मछवारे पकड़ ले जाते है। वही मछवारे जो हवासे शब्दों की , करोड़ो की बोली लगा जाते है। इसीसे सच की बात कोई नहीं करता अब , सब सूत्रों के हवाले से खबर देते है। सच सुनने में ठेस लगती है अब , सब टोकने से भूलकर भी न चूकते है। लोगो के व्यव्हार में सम्बन्ध की बजाए , व्यापर है रह गया। रिश्ते के अहमियत की बजाए , वो किश्तों में रह गया। इन्ही पथरो की दीवार से बाढ़ आ जायेगी , कौन रोक सकता है इसे ? मछवारे बह जायेगे , सिर्फ मछलिया रह जायेगी , कौन रोक सकता है इसे ? - संकेत अशोक थानवी ||१८/११/२०१७ || 

बदलाव (Badlaav)

बदलाव क्या जंगल ख़त्म हो रहे ? नहीं , बदल रहे।  लाखो पेड़ो के करोड़ो डालो पे मेहनती पंछियो के घोसले आज भी है। छोटे टूटे घोसलो को उखाड़नेवाले  बेसुरे कर्कश कौवे आज भी है।  ताक़तवर लेकिन निर्दयी स्वार्थी डरपोकभरी दहाड़े  ऐसे शेरो के इलाके आज भी है।  उन्ही इलाको में जीब-लटकाये दुम हिलाते भूके  कुत्तो के झुण्ड आज भी है।  ये तो सिर्फ उदहारण , ऐसे लाखो बाते आज भी है।  तो बदला क्या ?   ऑफिस में चार बाते सुनकर जा रहा चार चक्को पे  आराम करने घर की चार दीवारी में जा कर।  हरी लाइट तो मिल जाती है किस्मतसे  लेकिन सामने खड़ी आलिशान हज़ारो गाड़ियों की लाल बातिया मुझे रोक रही आँख दिखाकर।   खिड़की पे खड़खड़ाती गरीब नादान बच्ची  मुस्कुराती आगे निकल गयी मुझे झूठा अखबार बेचकर।  - संकेत अशोक थानवी || ०१ /०८ /१७ || 

जननी (Janani)

जननी  पहलेसे लिखे इतने खबरों - लेखो - कविताओ के बिच, मेरी इस कविता से क्या हो जाएगा ? जहा शक्ति मर्दानगी में नापते है , 'शक्ति' एक स्त्रीलिंग है , कौन उन्हें बताएगा ? लोगोकी गलती नहीं जब शब्द ही बदल जाए , बहार निकलने को डर रही तू जिस रात में , उसे निशा भी कहते , ये कौन याद दिलाएगा ? मर्दानगी की हुंकार देने वाले देख कितना डरते तुझसे , मार देते तुझे जन्म के पहले, ऐसे में तेरा अस्तित्व कौन बचाएगा ? अन्न देने वाली धरती स्त्री है , शायद इसीलिए तुझे चूल्हा पकड़ाते , ज्वालामुखी और भूकंप भी है तुझमे , ये कौन उन्हें स्मरण कराएगा ? हरपल किसी द्रौपदी का चीरहरण हो रहा , लेकिन महाभारत कही नहीं। जब हो तेरे अपने रखवाले पांडव लड़ने के लिए शर्मिंदा , तो दुर्योधनसे कौनसा सखा कृष्ण तुझे बचाएगा ? जब है हैवानियत का तेजाब किसीकी सोच में गढ़ा , अनजानसा बनकर दिनभर स्कार्फ़से ढककर छुपके , हमला कबतक होने से रह जाएगा ? सफ़ेद दाढ़ी वाले ये झुर्री भरे  समाज की सोच को पुनर्जन्म देना जरुरी है अब।  सिर्फ...

तू क्या पा लेता ? (Tu kya paa leta ?)

तू क्या पा लेता ? थोड़ा रूककर आराम करके , ज़िन्दगी के इन् पहले पड़ावों में क्यों थका महसूस कर रहा ? बचपन से अभतक सारे इच्छा के बादल गुज़रते हैं उस चोटी से , कौन मुझे रोक रहा ? उस चोटी की कीमत पसीना है , तुझे अब पता चला।  ये कठोर उदास दिनों में , क्या ज़रूरी नहीं साथी ? ऐसे धूपभरे पथरीले चादवपे , क्यों ज़रूरी है सही साथी ? उसके हौसले डगमगाने पे , तुम्हारी हिम्मत थर-थराती।  दफ्तर में काम करते वक़्त , मेट्रो-लोकल में किताब पढ़ते वक़्त , चौराह पे ठहरते वक़्त , मोहल्ले से निकलते वक़्त , क्या कोई नहीं मिला तुम्हे सालोसे इन् राहो में? अकेले हो?.. ऐसा लग रहा , क्या अकेलापन भ्रम नहीं ऐसे चाड़व की राहो में? देख आसपास ये अनजाने पुराने पेड़ ,ये ठंडी हवा , ये उतरनेवालो की मुस्कराहट , सब यार है तेरे थकान भरे सारे कदमो में।  ऑफिस में लिफ्ट से ऊपर की मंज़िल पे जाते वक़्त , क्यों मैं घबरा रहा ? सामनेवाला मुझसे पहले चोटी ना पहुंच जाये , ये ख्याल क्यों मुझे सता रहा ? बोहोत ज्यादा सूकरक्षित है तू,  शांति रख और उदास हो ! अनेको चल चुके जिस रास्ते पे तू है...

सपनो का सागर(Sapno ka sagar)

सपनो का सागर आया इस आखरी मोड़तक कई दफा, पहले बार इतना निहार रहा।  पेड़ो से भरे इन् गलियों को दूर जाते देख मै, एक जम्बूरा, अपने यादो के वनमें इनके अंकुर सवार रहा।  मेरे जैसे रोज़ कितने जाते होंगे, ऐसे खचाखच भरे डुगडुगाती गाडीमें फसकर! शहरमें भरी थाली के सपने पुरे करने चले, गाओंके दो वक़्त की रोटीमें से अपना-अपना हिस्सा लेकर।  बचपनसे लेकर अभी स्टेशन तक सुन रहा, की उस शहर में विशाल-अनंत सागर है, सपनोका।  थोड़ी दिक्कत... और ज़िन्दगी भर आराम की मछली का सुख वाहा, इन् सपनो के मछवारोंसे भरी ट्रैन में, अपना मिलकरभी नहीं लगता अब परिचितसा।  उतरा नहीं मै, स्वागत किया मेरा शहर के इस बड़े प्लेटफार्म पे, किसी छोटे दिलवालेने धक्का देकर गिराके। जैसे तैसे बहार निकलकर देखा मैंने कुछको, खुदके बनाये, शायद झूठे, बादलोमे उड़ते।  सालो तक नज़रे टिकाके नावमें बैठा, इन् बैगोके वजन से नहीं लेकिन, आशाओ-आकांशाओ का ये बोझ उठाके। चिढ़कर कूदा मै उस मछली की झलक के लिए, काफी निचे जाकर मछली आराम की मिली मुझे हसते हुए।  वो मौत थी, मेरे जैसे ही इस अ...

रिश्ता(Rishta)

रिश्ता मुझ जैसी सुखी रेत के लिए , ये आँखे वो लहरें , जो छूती सबसे पहले, तुझ जैसे खूबसूरती के समंदर के किनारे खड़े, तुझे याद करने पे।  उन् गुलाबी होटोको  चूमनेसे कैसे रोके  ये भ्रमर खुदको , जब धुंदले से दीखते है बाकि फूल बाग़में।  ये दो पंखुड़िया , जिसकी बाते गुलकंद  और हँसी ख़ुशी का इत्तर , भुला देती है बाकि सबकुछ उन्हें छूनेपे। आधी रात को घडी की आवाज़ के बिच वो रेशमी स्पर्श आजभी याद है , सास थी रुक गयी , पर अमृत मिला प्यारमें। हमारी रातोंकी कहानिया सुनले अगर कोई, विश्वास न फिर उसे हो भगवनमें तेरी मूरत की फिर पूजा करे वो, सोचे सिर्फ तुझे सुबह और शाम मे।  है प्यार का खुमार या , हमारी थकी रातो की एक एक कहानी , ये सुखी बंजर ज़मीं में बाढ़ के पीछे एक रिश्ता , तुम हो जिसकी नींव में।  समय की सुईमें  रिश्ते के धागे को पिरोके बने इस मखमली चादर को हमने चढ़ाया है इश्क़ की दरगाह पे।  - संकेत अशोक थानवी ॥१/३/२०१७ ॥ 

रास्ता (Raasta)

रास्ता किसी और के तराज़ूमें , खुदको मत तोलना।  रास्ता पता होकरभी चलना कैसे इसपे? खुदको है टटोलना ।  धोकेदार मोड़ कई सारे , बड़े गतिरोधक कई सारे , युही ना रुकले । बनो ऐसा की कांटे को छूकरभी , खून ना निकले।  भूलना मत इस सबमे आस पास देखना, कोई भी सड़क पूरी खाली नहीं होती।  एक ज़िन्दगी सिर्फ दो आखो की कहानी नहीं होती।  डूबता सूरज पीछे छोड़ने की ख़ुशी माना रहे हो तुम।  दरअसल, खुदकी परछाई का पीछा कर रहे हो तुम।  जैसे असत्य सत्य का , अंधकार उजाले का प्रमाण।  तू युही उदास ना हो चलते हुए , क्योंकि वो तेरे ख़ुशी का प्रमाण।  - संकेत अशोक थानवी ॥१४/२/१७॥ 

खाब मुझे देदो ( Khaab mujhe dedo)

खाब मुझे देदो अच्छी यादे तो सबको बता पाऊ, बुरी यादे बताकर रो पाऊ ऐसा कन्धा मुझे देदो।  बोलते रहने की जरुरत नहीं , चुप होके भी  शान्तसे रस्तेपे साथ चलने वाला यार मुझे देदो।  चाँद नहीं बनना मुझे , उसके बगलमे छोटेसे तारे की जगह मुझे देदो।  दोस्त की आशा नहीं , हमेशा साथ बैठे खंजर रखा हुआ दुश्मन मुझे देदो। उदास होने की बात नहीं ये, ये जो समझ पाए ऐसा सागर मुझे देदो। क्या थोड़ा भी जानते हो मुझे ? ऐसे खाब को हकीकतकर  मुझे देदो।   - संकेत अशोक थानवी ॥११/२/२०१७॥