जननी (Janani)
जननी पहलेसे लिखे इतने खबरों - लेखो - कविताओ के बिच, मेरी इस कविता से क्या हो जाएगा ? जहा शक्ति मर्दानगी में नापते है , 'शक्ति' एक स्त्रीलिंग है , कौन उन्हें बताएगा ? लोगोकी गलती नहीं जब शब्द ही बदल जाए , बहार निकलने को डर रही तू जिस रात में , उसे निशा भी कहते , ये कौन याद दिलाएगा ? मर्दानगी की हुंकार देने वाले देख कितना डरते तुझसे , मार देते तुझे जन्म के पहले, ऐसे में तेरा अस्तित्व कौन बचाएगा ? अन्न देने वाली धरती स्त्री है , शायद इसीलिए तुझे चूल्हा पकड़ाते , ज्वालामुखी और भूकंप भी है तुझमे , ये कौन उन्हें स्मरण कराएगा ? हरपल किसी द्रौपदी का चीरहरण हो रहा , लेकिन महाभारत कही नहीं। जब हो तेरे अपने रखवाले पांडव लड़ने के लिए शर्मिंदा , तो दुर्योधनसे कौनसा सखा कृष्ण तुझे बचाएगा ? जब है हैवानियत का तेजाब किसीकी सोच में गढ़ा , अनजानसा बनकर दिनभर स्कार्फ़से ढककर छुपके , हमला कबतक होने से रह जाएगा ? सफ़ेद दाढ़ी वाले ये झुर्री भरे समाज की सोच को पुनर्जन्म देना जरुरी है अब। सिर्फ...