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Showing posts from March, 2016

Safar(सफर)

सफर  ये सफर हम दोहरयगे बार बार।  याद करेगी ये आँखे इन् लम्हों को ज़िन्दगी के पार।  सिर्फ उफनती लहरें याद रहती है किसी नदी के बहाओ मे।  हड़बड़ाहट के लम्हे बच जाएंगे हमारी धूल खाती किताब मे।  मिलेंगे तुझे कई उलझे मोड़ रस्ते मे तेरे।  पूछना तो पड़ेगा की किस रास्ते है मेरी मंझिल दोस्त मेरे।  गिने चुने दिन का सफर ,समय ज्यादा नहीं।  सबकुछ करने के बिच बोहत छूट न जाये कही।  बदल जाता है रिश्तों का पैमाना। फिर भी याद रखना सिर्फ एक दूसरे का हसाना।  शांति के लिए बेचैन होने की जरुरत नहीं राह मे।  सफर के मझे लेलो तुम मंझिल के इंतज़ार मे।  - संकेत अशोक थानवी ॥ २६/०३/१६ ॥ 

शाम(Shaam)

शाम मेरे तीन साल के दिन का उजाला घट रहा, अँधेरे के पहले की सुहानी शाम है ये।  इतने लोगो के साथ बिताए अनगिनत लम्हे लिखने की ख़ुशी बहुत है, लेकिन शायद कुछ ज्यादा ही छोटी किताब है ये।  हसना-रोना इकरार-इनकार गपशप-बाते मिलके बनाते है इस कलम की स्याही को, सालो बाद भी ऐसे ही रहेगी जैसे पहले बारिश की सुगंध है ये।  ए तकदीर ! किसी को इतना खुश नाकर की उतना खुश रहने की आदत हो जाए, भिगाकर मुझे जानेवाली समुंदर की लहर है ये।  कुछ कहते की खुले दिमाग से सोचके देखू की है ये मामूली सीधी-साधी बात, मेरे लिए तो खुले हाथो से सीधी लकीर खीचना है ये।  - संकेत अशोक थानवी ॥ ०८/०३/१६॥