कहानी (Kahani)
कहानी (Kahani) मेरे ज़िन्दगीकी अमावस की रातमे, मैं भाग रहा खुदसे जैसे बैठा हूँ कोई ट्रैन मे। ज़िंदगी की खिड़कीपे बैठा , देख रहा आसमान को। सिर्फ एक मामूली टिमटिमाता ध्रुवतारा नहीं तुम मेरे लिए, बल्कि सारे तारे जोड़ बनाते है तेरी हस्ती-मुस्कुराती तस्वीर को। येही तो अब बचा है , जो बदलता नहीं समयके साथ कभी। मेरे इस चक्कर खाती जिन्दगीका तुमवो स्थिर बिंदुहो , जिसको देखता हूँ तो चलनेमे डगमगाता नहीं कभी। मेरे ख्वाबोकी तुम हो रानी , और मैं हूँ नवाब। ये अमावस की रात भी हो गयी नूरानी। लिखते वक़्त ये कागज़ जैसे हो तुम्हारा हाथ , और ये कलम एक गुलाब। ये तुम्हारा हाथ लेकर मैं उसपे गुलबसे रंगदु एक कहानी। - संकेत अशोक थानवी ॥३०/१२/१५॥