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Showing posts from January, 2016

कहानी (Kahani)

कहानी (Kahani) मेरे ज़िन्दगीकी अमावस की रातमे, मैं भाग रहा खुदसे जैसे बैठा हूँ कोई ट्रैन मे। ज़िंदगी की खिड़कीपे बैठा , देख रहा आसमान को। सिर्फ एक मामूली टिमटिमाता ध्रुवतारा नहीं तुम मेरे लिए, बल्कि सारे तारे जोड़ बनाते है तेरी हस्ती-मुस्कुराती तस्वीर को। येही तो अब बचा है , जो बदलता नहीं समयके साथ कभी। मेरे इस चक्कर खाती जिन्दगीका तुमवो स्थिर बिंदुहो , जिसको देखता हूँ तो चलनेमे डगमगाता नहीं कभी। मेरे ख्वाबोकी तुम हो रानी , और मैं हूँ नवाब। ये अमावस की रात भी हो गयी नूरानी। लिखते वक़्त ये कागज़ जैसे हो तुम्हारा हाथ , और ये कलम एक गुलाब। ये तुम्हारा हाथ लेकर मैं उसपे गुलबसे रंगदु एक कहानी।   -  संकेत अशोक थानवी ॥३०/१२/१५॥ 

बच्चा(Baccha)

बच्चा(Baccha) मोरका पंख देखा है कभी? कितना सुन्दर , कितना नाजुक  और कितना रंगीन।  कुछ ऐसाही था मेरा बचपन।  नहीं पता था क्या होती कमी।  आशाओका था मैं धनी।  नहीं पता था भूक-चोट को छोड़के , क्यों आती थी बड़ो की आखो मे नमी।  क्यों हस रहे हो ? इसका जवाब न होता कभी।  कोई किसेभी डाटे अगर जो घरमे , आता मुझे अपने आखोंका नल बहाना।  मुझे तो नहीं आता था , किसी डरपोक बिल्ली को भी भागाना।  ना थी कोई योग्यता मित्रताकी , गुड्डा-झाड़ू-ऑटो भैया अन्य सब से थी मेरी दोस्ती।  दोस्ती का मतलब नहीं पता था तब , लेकिन नहीं थी आज जैसी किसीसे मतलबी दोस्ती।  अगर एक छोटे बच्चेकी मासूम-मुरतके सांचे मे डालोगे पूरे दुनियाकी शोहरत को पिघलाके , ना भर पाओगे उसके पैरोकी छोटी ऊँगली।  समझ जाओगे वो बच्चा कितना दिव्य, और ये दुनिया कितनी धुंदली।  - संकेत अशोक थानवी ॥२६/१२/२०१५ ॥  

सच (Sach)

सच (Sach) पता है मुझे कुछ राज़ है तुझमे।  उस हंसी के निचे कोई बात है खुदमे।  सच छुपाना , खुदमे छुरी घुसाने बराबर।  छुरी न निकले , तो खुदको खुदही मारने बराबर।  तुम किसी एक को हर एक सच क्यों नहीं बोलते।  बताते क्यों नहीं की तुम किसीपे भी इतना विश्वास नहीं करते।  बोलके देखो मुझे , न करना पड़ेगा कुछ हिम्मत जुटाने के लिए।  एक बात बतादु तुझे ,  मै किसीको गलत समझता नहीं कोई बात बताने के लिए।  बोल्दो जो बोलना है , खुदमे खुदको रोका नहीं जाता।  चुप रहकर क्या बोलोगे तुम , कुण्डी लगाकर दरवाज़ा खोला नहीं जाता।  अजीब लगेगा ये पढ़के तुम्हे , पर हे ये भी सचही।  ये तो सच का छुरा निकल रहा मुझसे , छुरा निकलने वाले तुम्ही।  - संकेत अशोक थानवी ॥१५/१२/२०१५॥