Kal aaj aur kal (कल , आज और कल)
कल , आज और कल ये दो पिता , दो बेटे और तीन पीढ़ियों की कहानी हैं। सिर्फ मेरी आपकी नहीं दोस्तों , शायद ये घर घर की कहानी हैं। दादा बैठे सामने घरमे , वो शान है घरकी बात सबने मानी है। बैठे हो बेटा-पोता किधरभी , रखता वो सबकी कोतवलसी निगरानी है। कभी कभी इन् सबके बीच , करते वो सबपे अपनी 'दादा'गीरी वाली मनमानी है। मिले है कइयोंसे अस्सी साल मे , आज मिलती सबकी सलामी है। पिता… पिता देखते है घरका मजमा , वो घरमे सबसे ज्ञानी है। आता उन्हें बड़ी-बड़ी मुसीबतको , जादुई तरीकेसे छुपानी है। पुल है घरके वो अभी , जिसके एक छोर पर नयी और दूसरे पर चीज़े पुरानी हैं। संभाला है दादा का कारोबार , बात सिर्फ बेटे की नहीं पर बड़ोकी मानी है। मेरा तो है ये मानना … की कारोबार और परिवार साथ हो अगर , तो जैसे बारूदके साथ चिंगारी है। संभाला ना जाए ढंगसे , तो सिर्फ खुदको तो क्या सबको होती हानी है। पर अगर हो सहीसे इस्तमाल इसका , तो होती रोज़ दीवालीवाली आतिशबाज़ी है। सब ...