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Uncertain - अनिश्‍चित

Uncertain - अनिश्‍चित footpath पर चलके , local train को पछाड़ू कैसे ? भीड़ में दबकर आगे बढ़ना आसान है।  अकेले मैं खुदको धक्का मारु कैसे ? समुन्दर की गहराइयो में, दीखते है उड़ते बादल मुझे। झोपड़ीमें tin  के बने छतो में , दीखते है उड़ते विमान मुझे।  ज़िन्दगी इन् रास्तो जैसी है।  कभी कभी flyover पे उप्पर।  तो कभी उसके आगे गड्डोमें अटक जाते है।  red signal कोई नहीं तोड़ता, सब ज़िन्दगी में चलान काटने से डरते है।  green signal पे सब मुस्काय , सब घोड़े एक ही race  में दौड़ते है।  इन् street-lights और चमकते buildings से आसमान छोटा मनो हो गया है।  इस शहर के ऊपर उठके देखो , आसमान में अनेको सितारे चमकते है।  हमसब खुदकी हकीकत में है जीते , divider वाले रस्ते पे हम rear-window ज़रा काम ही देखते है।  ऐसे तो मेरे photo  को है 10k likes, बगल से निकल जाऊ उनके , तो वो मुड़के भी न देखते है।  - संकेत अशोक थानवी || ०६/०२/२०१८  ||