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स्वभाव (shavabhav)

स्वभाव   अहसासों के कॉपीराइट के बिच , असेवेदनशीलता है बढ़ रही। साफ़-सुथरे  बेरोकटोक बेहेनेवाली इन् भावो की तरंगो में , पत्थरोकी दीवार से इसमें अब काई है जम रही। जन्मती , पनपती, निखरती थी इसमें चमकती मछलिया, अब मछवारे पकड़ ले जाते है। वही मछवारे जो हवासे शब्दों की , करोड़ो की बोली लगा जाते है। इसीसे सच की बात कोई नहीं करता अब , सब सूत्रों के हवाले से खबर देते है। सच सुनने में ठेस लगती है अब , सब टोकने से भूलकर भी न चूकते है। लोगो के व्यव्हार में सम्बन्ध की बजाए , व्यापर है रह गया। रिश्ते के अहमियत की बजाए , वो किश्तों में रह गया। इन्ही पथरो की दीवार से बाढ़ आ जायेगी , कौन रोक सकता है इसे ? मछवारे बह जायेगे , सिर्फ मछलिया रह जायेगी , कौन रोक सकता है इसे ? - संकेत अशोक थानवी ||१८/११/२०१७ ||