बदलाव (Badlaav)
बदलाव क्या जंगल ख़त्म हो रहे ? नहीं , बदल रहे। लाखो पेड़ो के करोड़ो डालो पे मेहनती पंछियो के घोसले आज भी है। छोटे टूटे घोसलो को उखाड़नेवाले बेसुरे कर्कश कौवे आज भी है। ताक़तवर लेकिन निर्दयी स्वार्थी डरपोकभरी दहाड़े ऐसे शेरो के इलाके आज भी है। उन्ही इलाको में जीब-लटकाये दुम हिलाते भूके कुत्तो के झुण्ड आज भी है। ये तो सिर्फ उदहारण , ऐसे लाखो बाते आज भी है। तो बदला क्या ? ऑफिस में चार बाते सुनकर जा रहा चार चक्को पे आराम करने घर की चार दीवारी में जा कर। हरी लाइट तो मिल जाती है किस्मतसे लेकिन सामने खड़ी आलिशान हज़ारो गाड़ियों की लाल बातिया मुझे रोक रही आँख दिखाकर। खिड़की पे खड़खड़ाती गरीब नादान बच्ची मुस्कुराती आगे निकल गयी मुझे झूठा अखबार बेचकर। - संकेत अशोक थानवी || ०१ /०८ /१७ ||